Aman Azad Post

:::It can be late but can not be wrong:::

Tuesday, 27 March 2012

Unimaginable.... अकल्पनीय...

प्रिय मित्रो...

मेरी संघर्ष समाप्ति की घोषणा के साथ ही आज मुझे बहुत ही विख्यात कम्पनी के एक सदस्य की तरफ से लुभावना प्रस्ताव मिला ! ठुकराना असंभव था ! उनके प्रस्ताव को सुनने के पश्चात् स्पीक एशिया और स्पीक एशियंस के प्रति जो मोह का आभास हुआ, मैं उसे शब्दों में नहीं ढाल सकता ! १० माह से जो रिश्ते बन चुके थे वो सब टूटते से दिखने लगे ! मुझे मेरी भूल का ज़बरदस्त एहसास होने लगा ! उनके प्रस्ताव से एक बात समझ में आने लगी कि शायद वो इसी अवसर की तलाश में थे कि कब मैं चूक करूँ और वो वार कर दें ! उन्हे मेरे आर्थिक हालातों से कुछ लेना देना नहीं था ! वो सिर्फ अपना स्वार्थ साधना चाहते थे, ऐसा आभास उनकी बातों से होने लगा था ! मैंने उन्हे अपनी पिछली पोस्ट से चंद वाक्य याद दिलाये !

वाक्य कुछ यूँ थे कि
"जब स्पीक एशिया वापस आएगी तो मैं भी कमाऊंगा, स्पीक एशिया का आना निश्चित है और आकर ही रहेगी ! एक बात और कि अपनी संस्था पर भरोसा रखें, इतनी ईमानदार संस्था और इतने ईमानदार व्यक्ति रोज रोज नहीं मिला नहीं करते" !

अपने ही शब्द मेरे कानो में गूंजने लगे ! दोस्तों, एक भावुक व्यक्ति होने के नाते मैं अपनी परिस्थितियां भूलने लगा ! कारण यह भी था कि कुछ मुट्ठी भर लोगों के झूठे आरोपों से आहत हो कर मैं समाज के प्रति अपना कर्तव्य नहीं भूल सकता ! फिर गैरों से तो लड़ा जा सकता है लेकिन अपनों से कौन लड़े ? अपने लिखे हुए कुछ शब्द यहाँ दोहराना चाहूँगा कि

तेरी मंज़िल का फ़ैसला, तेरी ख्वाहिशों में हैं....
तेरे मुक़द्दर का फ़ैसला, ज़ोर आज़माईशों में है..!!!

पराये इंसान के एक फ़ोन ने मुझे मेरी भूल का एहसास दिला दिया था ! सत्य यह है कि आज के मेरे आर्थिक हालात अस्थायी हैं ! मुझे स्थायी और अटल को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना होगा और वो सिर्फ स्पीक एशिया है और कोई भी नहीं ! जीवन के इन कमज़ोर पलों में मेरे बहुत से साथी मेरी ताक़त बन के सामने आये ! मेरे जीवन में मुझे इतना नैतिक समर्थन एक ही दिन में कभी नहीं मिला ! यह सब मेरे लिए अकल्पनीय था ! मैं अपने उन सभी भाइयो और बहनों को सादर प्रणाम करता हूँ और उनका सदा जीवन भर आभारी रहूँगा !

महोदय के प्रस्ताव को सादर धन्यवाद् सहित ठुकराने के पश्चात् उनको एक सन्देश ई-मेल द्वारा भेजा ! वह सन्देश मैं आप सबके साथ बांटना चाहता हूँ !

मैं खड़ा हूँ अभी... मैं अड़ा हूँ अभी...
मैं लड़ा था कभी... मैं लडूंगा अभी..!

हार सा नासूर नहीं...
मात हो, मंज़ूर नहीं...!!
पल भर को ठहरा था कहीं...
मैं बढूँगा अभी....!!!

मैं खड़ा हूँ अभी... मैं अड़ा हूँ अभी...
मैं लड़ा था कभी... मैं लडूंगा अभी..!

आपका आभारी...
अमन आज़ाद